चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में निर्वाचित हर पार्षद दल-बदल करने हेतु होगा कानूनन स्वतंत्र
चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में निर्वाचित हर पार्षद दल-बदल करने हेतु होगा कानूनन स्वतंत्र
चंडीगढ़ नगर निगम कानून की धारा 13 में दल-बदल करने पर सदस्य गंवाने का प्रावधान नहीं
फरवरी, 2018 में ड्राफ्ट संशोधन बिल में किया गया था प्रस्ताव, नहीं चढ़ सका सिरे - एडवोकेट
9 मनोनीत सदस्यों का वोटिंग अधिकार अगस्त, 2017 में हाई कोर्ट ने घोषित कर दिया था असंवैधानिक
चंडीगढ़ - शुक्रवार 24 दिसम्बर को चंडीगढ़ नगर निगम के छठे आम चुनाव हेतु करवाए गए मतदान, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, हेतु मतगणना सोमवार 27 दिसम्बर को होगी एवं सभी वार्डो के नतीजे दोपहर तक घोषित हो जाएंगे. 30 दिसंबर तक समस्त चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न की जानी है.
बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि नगर निगम के चुनावी नतीजे बेशक कुछ भी रहें, परन्तु चुनाव जीतने के बाद चंडीगढ़ के सभी 35 वार्डों से नव निर्वाचित पार्षद (कौंसलर) दल-बदल करने हेतु पूर्णतया स्वतंत्र है क्योंकि चंडीगढ़ पर लागू पंजाब नगर निगम कानून (चंडीगढ़ में विस्तार ) अधिनियम, 1994 , जैसी कि आज तक संशोधित है, में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी कोई प्रावधान उपरोक्त 1994 कानून में नहीं है. इस प्रकार हर पार्टी से या निर्दलीय के तौर पर निर्वाचित पार्षद बे रोक-टोक विपक्षी दल में आ जा सकता है एवं इससे उसकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उपरोक्त 1994 कानून की धारा 13 , जो पार्षदों की अयोग्यता से संबंधित है, में इस बारे में कोई उल्लेख नहीं है.
चूँकि आगामी जनवरी के आरम्भ में चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर , सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव करवाया जाएगा जो नव निर्वाचित 35 पार्षदों द्वारा एवं उनमें से ही किया जाएगा, इसलिए अगर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को नगर निगम सदन में बहुमत प्राप्त नहीं होता, तो इस बात की प्रबल सम्भावना है कि भाजपा द्वारा विपक्षी कांग्रेस, अकाली दल-बसपा, आप पार्टी और निर्दलीयों से निर्वाचित पार्षदों में सेंधमारी की जा सकती है. स्थानीय भाजपा सांसद किरण खेर की भी नगर निगम सदन की बैठकों में एक वोट होती है जबकि चंडीगढ़ प्रशासक द्वारा मनोनीत किये जाने वाले 9 पार्षद का वोटिंग अधिकार अगस्त, 2017 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर समाप्त कर दिया था. इसके विरूद्ध दायर अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है हालांकि हाई कोर्ट के निर्णय पर कोई स्टे नहीं दिया गया था.
हेमंत ने बताया कि जिस प्रकार इसी वर्ष पड़ोसी हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा वहाँ की विधानसभा द्वारा हिमाचल नगर निगम कानून में संशोधन कर निकाय चुनाव पार्टी चुनाव चिन्हों पर लड़ने एवं स्थानीय नगर निकायों में निर्वाचित सदस्यों (पार्षदों) को पाला-खेमा बदलने से रोकने हेतू दल-बदल विरोधी कानूनी लागू करने संबंधी कानूनी प्रावधान किए गए हैं, वैसा ही कानूनी संशोधन चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू कानून में किया जाना चाहिए.
हालांकि करीब चार वर्ष पूर्व फरवरी, 2018 में चंडीगढ़ के तत्कालीन गृह एवं स्थानीय स्वशासन सचिव अनुराग अग्रवाल, आईएएस द्वारा चंडीगढ़ नगर निगम कानून में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी प्रावधान सहित कई संशोधन करने सम्बन्धी एक ड्राफ्ट बिल चंडीगढ़ नगर निगम की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया गया था परन्तु दुर्भाग्यवश वह सिरे नहीं चढ़ पाया. उक्त ड्राफ्ट बिल में चंडीगढ़ नगर निगम कानून, 1994 की धारा 13 में संशोधन और कानून में एक नयी चौथी अनुसूची शामिल करना प्रस्तावित था जो दल-बदल विरोधी प्रावधानों से सम्बंधित थी.
हेमंत ने कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल बदल विरोधी/रोकथाम कानून हैं, वह केवल संसद और राज्य विधानमंडलों पर लागू होता है, शहरी स्थानीय निकाय (म्युनिसिपल ) संस्थानों जैसे नगर निगमों/परिषदों/ पालिकाओं पर नहीं इसलिए उक्त नगर निकाय के विपक्षी पार्षद कभी भी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मेयर/अध्यक्ष में खेमों/पार्टियों में शामिल हो सकते है हालांकि अगर केंद्र सरकार चाहती तो बीते चार वर्षो में संसद सत्र दौरान चंडीगढ़ पर लागू नगर निगम कानून में संशोधन करवाकर पार्षदों द्वारा दल-बदल करने पर अंकुश लगा सकती थी जैसे हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने किया है. कर्नाटक में भी वर्ष 1987 में स्थानीय निकायों संस्थानों में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा दल-बदल रोकथाम के लिए कानून बना लागू किया गया.